प्राया; देखने में आ रहा है कि आजकल फेसबुक पर कोई पोस्ट डाली जाती है चाहे वह सत्य हो या न हो फेस्बुकिया ग्रुप के सभी सदस्य अपना अपना अभिमत देना प्रारम्भ कर देते हैं। हर सदस्य यह सोचता है कि कहीं मैं अपनी बात कहने मैं पीछे न जाऊँ। और इसी जल्दबाजी में उस पोस्ट की कोई अधिकृत सत्यता न होने से उपहास के पात्र तो बनते ही हैं साथ में क़ानूनी कार्यबाही का सामना भी करना पड़ता है। अतः हमें जल्दबाजी में ऐसे समीक्षक बनने से बचना चाहिए।
फेसबुकिया समीक्षक न बनें ?